भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है | इसके साथ ही इन्हे भगवान विष्णु का उग्र अवतार भी कहा जाता है | इन्होने एक बार नहीं बल्कि 21 बार इस धरती को क्षत्रियों से विहीन किया था | इन्हे बाल ब्रह्मचारी और अतिक्रोधी की उपाधि भी दी गयी थी | इनके पितामह भृगु ऋषि थे और इनके पिता महर्षि जमदिग्नी थे | इनकी माता का नाम रेणुका था | भगवान परशुराम के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब इन्होने अपनी ही माता का सर काट दिया था | आज हम इसके पीछे की वजह बताने जा रहे है |
परशुराम अपने सभी भाइयो में सबसे छोटे थे | वे अपने माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे | इनका नामकरण संस्कार इनके पितामह भृगु ने किया था | उन्होंने भगवान परशुराम का नाम केवल राम ही रखा था | इसके बाद इन्होने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी | उन्होंने राम की तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिग्विजय शस्त्र परशु वरदान स्वरुप दिया था | जिसके बाद उनका नाम परशुराम पड़ गया था | यह विश्व में अत्यधिक क्रोध वाले देवता के रूप में जाने जाते है | एक बार इसी क्रोध का इनकी माता को भी सामना करना पड़ा था |
ऐसा कहा जाता है की महर्षि जमदग्नि ने एक यज्ञ किया था | यज्ञ करते समय उन्होंने अपनी पत्नी रेणुका से कहा था की जंगल में जाकर सुखी लकड़ियां लेकर आओ | जब रेणुका जंगल गयी तो उन्होंने देखा की निकट ही एक सरोवर में अनेक अप्सराये और गन्धर्व जलक्रीड़ा कर रहे है | यह दृश्य इतना आनंददायी था की उन्हें देखने के लिए वह रुक गयी | रेणुका को जलक्रीड़ा देखने में समय का ध्यान ही नहीं रहा | इसलिए वह यज्ञ में लकड़ियां लेकर काफी देर बाद पहुंची |
जब महर्षि जमदग्नि ने रेणुका को देरी से आने का कारण पूछा तो उसने कहा की नजदीक लकड़ियां नहीं मिली | इसलिए वह लकड़ियां लेने दूर चली गयी | महर्षि जमदग्नि त्रिकालदर्शी थे उन्होंने अपनी दिव्यदृष्टि से सब जान लिया की वो किस कारण देरी से आयी | अपनी पत्नी के झूठ बोलने से वो बहुत क्रोधित हुए | उन्होंने अपने सभी पुत्रो को बुलाया और उन्हें बताया की आपकी माता ने झूठ बोल रही है, तुम अपनी माता का सर काट दो |
बाकी पुत्रो ने अपनी माता रेणुका का सर नहीं काटा | इस पर जमदग्नि अत्यंत क्रोधित हो गए | जब परशुराम से कहा के अपनी माता के साथ अपने भाइयो का भी सर काट दो तो उन्होंने बिना समय गवाए सीधे अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और अपने 5 भाइयो सहित अपनी माता का सर धड़ से अलग कर दिया | अपने आज्ञाकारी पुत्र से जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम से कहा की पुत्र तुम कोई वरदान मांगो |
उस समय परशुराम ने कहा की उनकी माँ और सभी भाई जीवित होजाए और उनको इस बात का स्मरण न रहे की उनका मैंने सर काटा था | जमदग्नि ने वैसा ही किया और परशुराम के सभी जीवित हो गये और किसी को इस बात का स्मरण भी नहीं रहा | ऐसा कहा जाता है की भगवान परशुराम ने राजस्थान के जिले चित्तौड़गढ़ ( मातृकुण्डिया ) में जाकर शिव की तपस्या की और तब उनको माता की हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी |
चित्तौड़गढ़ के आसपास का इलाका आदिवासियों का है | इसलिए किसी दूसरे व्यक्ति का वहां जाना खतरे से खाली नहीं है | आज भी इस स्थान को बहुत ही पवित्र मानते है | यहाँ एक जनजाति रहती है | इस जनजाति का नाम भील है | यह जनजाति इस स्थान को हरिद्वार से भी बढ़कर मानती है | इसलिए इस स्थान को भीलो का हरिद्वार भी कहा जाता है |